कबीर के दोहे

 

         कबीर के दोहे

कबीर दास जी के दोहे उनकी शानदार रचनाओं में से कुछ हैं:

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय॥ 

माला तो कर मेरे भाई, जपत निरंतर राम। रहिमन उद्धारत जाए, तजि बौरान का नाम॥ 

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥ 

साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधू ना भूखा जाय॥ 

काम क्रोध मद लोभ का, सब बीज साधु लोय। जो यह बीज बोए, सो लाख करोड़ खोय॥ 

ये कुछ उदाहरण हैं, कबीर दास जी के अनेक दोहे लोकप्रिय हैं और उनकी रचनाएं गीतों, दोहों, और शब्दों के माध्यम से लोगों के दिलों में है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविन्द दियो बताय॥

कबीरा तेरे गुन गाए, उन गुनों को कोय। जो तेरे गुन गाएगा, वो तन परित्याग॥

मोहे रखी लिखा ना जोगी, जोगी रखे लिखा ना होय। जो लिखा हैं तो आप ही, जोगी रहते सोय॥

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

खिंची पुलिस उड़ी बांधी, बंदन जैसे रजाई। सुन्न लोक खड़े क्यों रे, मैं आगे रचाई॥

गुरु की कान्ति सब जग जाने, गुरु की गति में देख। गुरु बिन गति नहीं कोई, गहिन अविरत रेख॥

गुरु कहते गुण नहीं गावै, सिर धरै नाम अपार। नाम कहते नाम नहीं जाने, ताते जग महिं संसार॥

मोहे रहत खरीद न आई, खरीदी लाई नाहीं। पंडित भया न कोई, तुटी खड़ी अडाहीं॥

जो तुझ बिनु बैरी नहीं ब्रह्मा बिष्णु महेस। एक अंसु दिखावै तें सब दिखावै अकेश॥

बावरिया छोड़ दे मन का, बांधा रहत द्वेष। दिखावै रूप न अपना, ज्यों भ्रमत फिरे भेष॥

साधो यह ब्रह्म हैं, ब्रह्म हैं यह सब संसार। साधक यह आत्मा हैं, विद्या रहत उजियार॥

तीसरी जाती साधना की, बिन सत नहीं होय। गुरु बिनु नाहीं ज्ञान पावै, मानुष बिन सुख न कोय॥

साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधू ना भूखा जाय॥

गुरु की माहिमा को कोई न जाने, लिखा लिखी करें ले। जो गुरु बिन नेह ना आवे, सो आंधी दिखावें डे॥

दुखी राम ना कोई, सुखी कहां जावें। जो सुखी राम नाम लेवें, तो दुख नहीं पावें॥

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा ना कोय॥

जो तू चाहे सोई देवा, जैसी तू नींद राखे। सोई सो सो मगन रहे, अवगुण चरखा जाके॥

जाति ना पूछो साध की, पूछ लीजिए ग्यान। मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥

जाति जोगि जीवन की जड़ि-जोड़ नावे। तत्व विचार सो कटे, तोय कुंडल मिलावै॥

ये कुछ उदाहरण हैं, जिनमें कबीरदास जी की संदेशपूर्ण बातों को समाहित किया गया है। उनकी रचनाएं और दोहे आध्यात्मिकता, समग्रता, और जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।







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